अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भारत दौरा ख़त्म हो चुका है और इस बात में कोई दो मत नहीं है कि ट्रंप की अधिकारिक भारत यात्रा बहुत ही सफल रही, हालांकि यह पहले से ही तय था कि जब भी ट्रंप भारत आएंगे उनके लिए हुस्टन में हुए हाउडी मोदी से बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इससे उन्हें ना सिर्फ अनेकों भारतीय-अमेरिकियों का वोट मिलेगा बल्कि उन्होंने भारत के साथ 3 बिलियन डॉलर के भारी-भरकम रक्षा समझौते भी कर लिए। इस दौरे पर दोनों देशों में कोई ट्रेड डील तो नहीं हुई, लेकिन वे किसी छोटे डील की जगह एक बहुत ही बड़े कंप्रिहेंसिव व्यापार समझौते की नींव रखकर गए हैं, जिसकी इस साल के अंत तक हो जाने की उम्मीद है।
इस यात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच निजी बातचीत की भी तमाम व्याख्याएं की गईं, लेकिन सबसे बड़ी बात तो यही है कि डोनाल्ड ट्रंप भारत आए। उन्हें लंबी दूरी की फ्लाइट्स पसंद नहीं है और वो बाहर जाना भी पसंद नहीं करते, फिर भी उन्होंने सपरिवार भारत दौरा किया। जबकि ये उनका चुनावी साल है और उनके पास समय कम है। बिल क्लिंटन, जॉर्ज बुश एवं बराक ओबामा के बाद डोनाल्ड ट्रंप लगातार चौथे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने भारत का दौरा किया है। अब तो ये परंपरा सी बन गई है। हालांकि इस दौरे में एक लिमिटेड ट्रेड डील की बातें भी कही जा रही थी, लेकिन वह भी नहीं हो पाया क्योंकि दोनों ही तरफ़ अभी भरोसा थोड़ा कम है और मुद्दे ज़्यादा। चूंकि दोनों ही नेता अपने देश के लिए संरक्षणवादी नीति अपना रहे हैं इसलिए इस समझौते को चुनाव तक के लिए टाल दिया गया। अमेरिका जानता है कि कई मामलों में भारत को भी छूट देनी पड़ेगी जो शायद अमेरिकियों को पसंद ना आए, इसलिए ट्रंप भारत से 25 बिलियन डॉलर के व्यापार घाटे को कम करने के लिए यह समझौता करना चाहते हैं। चूंकि अमेरिकी व्यापार घाटे के मामले में भारत का स्थान नौवां है जबकि पहले स्थान पर $400 बिलियन के साथ चीन, $100 बिलियन के मैक्सिको दूसरे, $65 बिलियन के साथ जापान तीसरे, $62 बिलियन के साथ जर्मनी चौथे, $55 बिलियन के साथ वियतनाम पांचवे स्थान पर है, इन सब देशों से ट्रेड डेफिसिट के मुकाबले हमारा स्थान बहुत नीचे है फिर भी चीन से व्यापार युद्ध छेड़ने और पहले चरण का व्यापार समझौता करने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने सबसे ज़्यादा दबाव नौवें स्थान वाले भारत पर बनाया।
भारत इसलिए, क्योंकि हम ना सिर्फ दुनियां की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, ना सिर्फ दुनियां के दूसरे सबसे बड़ा हथियार आयातक देश हैं बल्कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार भी है, और इस दबाव की आड़ में अमेरिकी राष्ट्रपति इस देश में अपने डेयरी और कृषि उत्पादों के लिए उपभोक्ताओं का बाज़ार प्राप्त करना चाहते हैं ताकि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अपने कृषि-उत्पादों की क़ीमत बनाए रखने और उसे बेचने के लिए भारत जैसा उपभोक्ता मिल सके, इसलिए अमरीका भारत के बाज़ार मे प्रवेश के लिए हर तरह की रणनीति का इस्तेमाल करने में तनिक भी नहीं हिचकिचाता है। लेकिन एक धार्मिक शाकाहारी पहचान और कृषिप्रधान देश होने के साथ ही भारत की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या कृषि से जुड़े हुए क्षेत्रों से अपना रोज़गार चलाती है इसलिए किसी भी प्रकार का कृषि-आयात भारत के लिए बहुत ही संवेदनशील होगा, दूसरा यह कि अमेरिकी गायों से ज़्यादा प्रोटीन प्राप्त करने के लिए उन्हें चारे में मांस दिया जाता है ऐसे में कई दशकों तक भारतीय सरकार ने अपने धार्मिक रीति-रिवाजों के आड़ में किसी भी प्रकार के अमेरिकी डेयरी उत्पादों को यहां बेचने पर रोक लगा रखी है लेकिन फिलहाल के दबाव में यह रोक लड़खड़ाते हुए दिख रही है। अगर यह रोक हटी तो इससे अमेरिका को तो बड़ा बाजार मिल जाएगा लेकिन दूध कि कीमत 45 से घटकर लगभग 25 पर आ जाएगी, इससे भारतीय दुग्ध उत्पादकों के भविष्य पर संकट हो जाएगा क्योंकि इन कृषि और डेयरी उत्पादों के भारत में आने से भारतीय उत्पादक इनकी कीमत एवं गुणवत्ता से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे। हालांकि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी यात्रा से पूर्व भारत पर टैरिफ़ किंग होने का इल्ज़ाम कई बार लगा चुके हैं, लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री ने कृषि आयात पर देश की संवेदनशीलता और राजनैतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए किसी भी प्रकार का व्यापार समझौता नहीं किया।
भारत को अमरीका के साथ किसी भी व्यापार समझौते से पहले अपनी कृषि, लघु और मध्यम उद्योग क्षेत्र के हितों और संवेदनशीलता का ध्यान रखना होगा। फिलहाल ट्रंप की यात्रा के दौरान व्यापार समझौते को सिर्फ रक्षा, उड्डयन और प्रौद्योगिकी तक ही सीमित रखा गया लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के इस दौरे से दोनों देशों के संबंध प्रगाढ़ हुए हैं और भविष्य में दोनों देशों के व्यापार समझौतों को और बल मिलने की प्रबल संभावना है। भारत चाहता है कि उसे फिर से जनरल सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस का दर्जा दिया जाए जिससे $5.7 बिलियन की वस्तुओं का निर्यात बिना किसी रूकावट के संभव हो सके इसके अलावा भारत स्टील पर लगाए गए 25 प्रतिशत टेरिफ को भी कम कराना चाहता है ताकि भारतीय स्टील इंडस्ट्री पर कोई संकट ना आए, क्योंकि चीन के 938 मिलियन टन के बाद भारत 107 मिलियन टन के साथ दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा स्टील उत्पादक देश है। हालांकि दोनों ही नेताओं के अपने वोटबैंट हैं, जिन्हें वो संतुष्ट करना चाहते हैं। लेकिन भारत इस डील को अपनी ओर झुकाने की इसलिए कोशिश करेगा, क्योंकि अमेरिकी व्यापार घाटे को भारत उससे तेल एवं गैस खरीदकर पाट रहा है, स्थिति ये है कि अब अमेरिका दुनियां का सबसे बड़ा तेल विक्रेता बन गया है जो एक दशक पहले तक सबसे बड़ा खरीददार हुआ करता था। पिछले साल भारत ने अमरीका से लगभग $7 बिलियन का तेल और गैस ख़रीदा, जबकि इस साल ये व्यापार $9 बिलियन होने की उम्मीद है। यह खरीददारी रक्षा सौदों से अलग है, फिलहाल हम इस रक्षा सौदे से नौसेना के लिए 24 एंटी सबमरीन एमएच-60 रोमियो हेलीकॉप्टर और थल सेना के लिए 06 एएच-64ई अपाचे हेलीकॉप्टर खरीद रहे हैं। इसके अलावा अमेरिका, रूस से एस-400 एंटी बैलेस्टिक मिसाइल सिस्टम खरीदने की आड़ में दबाव डालकर भारत को अपना नासम्स-2 एयर डिफेंस सिस्टम बेचना चाहता है, जो फिलहाल तो प्रक्रिया में है, लेकिन शायद जल्दी ही इसे 2+2 मीटिंग में फाइनल कर दिया जाएगा। इससे दोनों के बीच व्यापार घाटा कम हुआ है, यकीनन इस बात से राष्ट्रपति ट्रंप को ख़ुशी होगी। लेकिन इसके अलावा ट्रंप अफगानिस्तान में भारत द्वारा सहयोग बढ़ाने और पेटेंट नियमों में सख्त कानून लाने की भी मांग कर रहे हैं। हाल ही के दिनों में भारत-अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते की भी चर्चा थी लेकिन अपने पिछले मुफ्त व्यापार समझौतों और हाल ही के आरसीईपी की वजह से यह समझौता नहीं हो पाया।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का महाभियोग से बच निकलने के तुरंत बाद अपनी पहली विदेश यात्रा में सपरिवार भारत आने के पीछे सबसे बड़ा उद्देश्य अमेरिकी चुनावों की नजदीकी है जिसमें सिर्फ कुछ ही महीनों में उनके प्राथमिक उम्मीदवार बनने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी। जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति और उनके पूरे परिवार ने भारत में आकर अपनी यादों को संजोया है निश्चित रूप से वह ऐतिहासिक है क्योंकि इससे पहले वे किसी भी दौरे में सपरिवार नहीं गए थे, और वापस जाने के बाद भी ट्रंप ने एरिजोना के अपने भाषण में भारत और मोदी की तारीफ़ करते हुए लोगों को कहा कि मैं अब दोबारा वह उत्साह कभी नहीं देख पाऊंगा जैसा कि भारत में मैंने देखा है वहां पर सवा लाख की जनसंख्या उपस्थित थी। इसके अलावा उनकी बेटी इवांका ट्रंप के कई मीम्स भी भारतीय सोशल मीडिया में छाए रहे जिसका जवाब देकर उन्होंने भारतीयों के दिल में अटूट जगह बनाई। उन्होंने भी कहा कि मैंने भारत जाकर बहुत से दोस्त बनाए हैं।
ट्रंप ने मोटेरा स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में पीएम मोदी के सामने कश्मीर और पाकिस्तान का भी ज़िक्र किया था। इसे भारत एवं अमेरिका में अपने-अपने तरह से देखा जाएगा और पाकिस्तान में भी। हालांकि पाकिस्तान का ज़िक्र करके ट्रंप ने कोई उपलब्धि हासिल नहीं कर ली है बल्कि भारत पहले से ही यह उम्मीद कर रहा था, कि ट्रंप ऐसी बातें जरूर कहेंगे। चूंकि मोदी और ट्रंप दोनों ही राष्ट्रवादी नेता हैं इसलिए वर्तमान भारत सरकार ट्रंप को अच्छी तरह समझती है। वे कई बार कह चुके हैं कि अगर दोनों पक्ष चाहें, तो वो कश्मीर पर मध्यस्थता करना चाहेंगे और इस बार भी उन्होंने ये बात कही, इसलिए भारत ज़्यादा सरप्राइज़ नहीं हुआ। लेकिन एक दूसरा पहलू और भी है कि अफ़ग़ानिस्तान में जो पीस डील हुई, यह पाकिस्तान को कुछ ख़ुश करने के उसी तरीके से हो पाया, क्योंकि पाकिस्तान और उसके प्रधानमंत्री इमरान खान ट्रंप से हमेशा यही गुज़ारिश करते हैं कि आप भारत पर दबाव डालिए जिससे वह हमसे बातचीत शुरू करे, इसलिए ट्रंप सार्वजनिक रूप से ये बात कह देते हैं, उससे पाकिस्तान भी ख़ुश हो जाता है और उनकी जनता भी, लेकिन भारत सरकार को इससे कोई ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता है। यह अमरीकी प्रशासन की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है जिससे वो भारत और पाकिस्तान दोनों को बैलेंस करके चलते हैं, क्योंकि अमरीकी भी जानते हैं कि अगर भारत कश्मीर पर मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं है, तो ट्रंप क्या, कोई भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता। और यह नीति नरेंद्र मोदी के सिर्फ आज के भारत का नहीं, बल्कि उनसे दशकों पहले से भी बहुत तगड़ा है। एक कड़वा सच भी है, जिसे हम भारतीयों को जानना होगा कि ट्रंप के भारत आने से कुछ दिन पहले है अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय ने भारत को विकासशील देशों की सूची से बाहर निकाल दिया, यानी अब भारत को कोई विशेष छूट नहीं मिलेगी। यह जीएसपी के बाद भारत के लिए दूसरा बड़ा झटका है, दूसरी तरफ एशिया में चीन को बैलेंस करने के लिए अमेरिका को भारत की ज़रूरत है इसलिए अमेरिका भारत को ज़्यादा तरजीह दे रहा है। और रही बात अमेरिका का धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की सीएए और दिल्ली हिंसा पर गंभीर रिपोर्ट की, तो मेरे ख्याल से उससे दोनों की रणनीतिक साझेदारी पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। अगर यह बिल्कुल ही नियंत्रण के बाहर हो जाता है, कि भारत एक देश के तौर पर अस्थिर हो जाए, तो ऐसा अभी कुछ भी नहीं है और आशा है कि मोदी सरकार जल्द इसका कोई हल ढूंढेगी। लेकिन मोटी बात यही है कि अमरीका चीन को बैलेंस करना चाहता है, क्योंकि अमरीका में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों ही पार्टी समझ रही हैं कि चीन उनका मुख्य प्रतिद्वंदी है. उसके लिए भारत के साथ साझेदारी बहुत महत्वपूर्ण है।
अपने धार्मिक स्वतंत्रता आयोग से परे ट्रंप ने सीएए और दिल्ली हिंसा मुद्दे पर यथास्थिति बनाए रखी। राष्ट्रपति ट्रंप से जब इस बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कोई ठोस जवाब नहीं दिया, जबकि सीएए को लेकर अमरीका तक में विरोध प्रदर्शन हुआ और मीडिया में भी काफ़ी कुछ लिखा गया था। इस मुद्दे पर ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले ही कह दिया था कि मैं किसी भी विवादित मुद्दे पर नहीं बोलूंगा। हालांकि उनकी निजी बातचीत में ये मुद्दा ज़रूर उठाया गया होगा क्योंकि व्हाइट हाउस ने इसका इशारा पहले ही दे दिया था। प्रेस कांफ्रेंस में ट्रंप ने इसपर प्रतिक्रिया देते हुए यहां तक कह दिया कि मोदी ने उन्हें विस्तार से बताया है कि भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के तहत क्या दिक्क़त है और उन्होंने यह भी बताया कि पहले 14 मिलियन मुस्लिम होते थे, अब बढ़ गए हैं। हालांकि ट्रंप हमेशा की तरह फिर एक झूठ बोल गए क्योंकि आज़ाद भारत में मुसलमान 14 मिलियन यानी 1.4 करोड़ कभी नहीं रहे। इस समय भारत में मुसलमान कुल जनसंख्या के 14 फ़ीसदी हैं, यानी क़रीब 20 करोड़।
लेकिन सवाल यह है कि क्या डोनाल्ड ट्रंप दुबारा राष्ट्रपति बन पाएंगे ताकि वे फिर से भारत आ सकें। हालांकि ये ट्रंप की पहली भारत यात्रा नहीं थी, उससे पहले भी वे व्यापार के लिए भारत आ चुके हैं, लेकिन उस समय वे राष्ट्रपति नहीं थे। यकीनन अब भी वे फिर से भारत आएंगे लेकिन किस परिस्थिति में, यही देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वी डेमोक्रेटिक पार्टी और उसके नेता बर्नी सैंडर्स ने इसे मुद्दा बना लिया है। वो देख रहे हैं कि भारत में क्या हो रहा है, उन्होंने दिल्ली हिंसा और सीएए पर भारतीय प्रशासन से बहुत से सवाल पूछे हैं और 20 करोड़ भारतीय मुस्लिमों की नागरिकता और सुरक्षा पर सवाल भी उठाया है। अमरीकी संसद में तो एक रिजोल्यूशन भी चल रहा है जो भारतीय-अमरीकी सांसद प्रमिला जयपाल ने शुरू किया है, इससे सैंडर्स की लोकप्रियता बहुत तेज़ी से बढ़ी है और वे ट्रंप के मुकाबले संभावित उम्मीदवार की नजर से देखे जा रहे हैं, तो ये चिंता करने वाली बात तो है ही, क्योंकि लोग देख रहे हैं और हम इसे छिपा तो नहीं सकते। हालांकि यह भारत के हित में होगा कि ट्रंप दुबारा राष्ट्रपति बनें। लेकिन यहां पर समझने वाली बात है कि हमारे दोनों ही नेता, चाहे वो मोदी हो या ट्रंप, देश को महान बनाने का सपना दिखाकर सत्ता में आए थे और आज यह दोनों पूरे विश्व के राष्ट्रवाद के अहम चेहरे हैं, एक ने देश भर की मीडिया को अपने कंट्रोल में कर रखा है और दूसरे ने मीडिया की बादशाही छीन कर रख दी है, इस तरह दुनियां के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अपाहिज़ कर दिया गया है, ऐसी परिस्थिति में सिर्फ डोनाल्ड ट्रंप ही दुबारा राष्ट्रपति बन कर भारत आएं, यही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि दिल्ली हिंसा, अर्थव्यवस्था, बेरोज़गारी, सीएए और एनआरसी पर विश्वभर में भारत की किरकिरी करा चुकी वर्तमान सरकार भी बची रह पाएगी या नहीं, यह भी देखना उतना ही महत्वपूर्ण होगा, और हम जरूर देखेंगे।
06 मार्च 2020
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