विश्व में जितनी तेजी से कोरोनावायरस नहीं फैला, उससे कहीं ज्यादा तत्परता से चीन पूरी दुनिया को मास्क और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने में लगा हुआ है। अब विश्वभर के देश इस बात पर चिंतित हैं कि वह चीन पर संक्रमण फैलाने का आरोप लगाकर दंड दें और मुआवजा मांगे या संक्रमण फैलने के बाद लोगों को बचाने में तत्परता और सहयोग के लिए उसकी तारीफ करें। एक तरफ अमेरिकी वकील लैरी क्लेमेन ने टेक्सास के फेडरल कोर्ट में चीन पर 20 ट्रिलियन डॉलर मुआवजे का मुकदमा दायर कर दिया गया है तथा इटली के नागरिक भी चीन से युद्ध क्षतिपूर्ति की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने चीन की वेट मार्केट को बंद कराने को लेकर संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन में शिकायत दर्ज कराने की बात कही है, साथ ही इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ जूरिस्ट ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में चीन पर अंतरराष्ट्रीय नियमों एवं कानूनों के उल्लंघन का दोषारोपण करते हुए उसे दंड एवं विश्वभर को क्षतिपूर्ति देने का मुक़दमा दायर कर दिया है। इन सब परेशानियों के बाद भी चीन ने सुपरपावर बनने की अपनी महत्वाकांक्षाओं को आगे रखते हुए ऐसी कूटनीति पर दांव चला है, जिससे उसकी साख भी बची रहेगी और विश्वभर के देश दंड की जगह उससे सहानुभूति दिखाने लगेंगे। इस कूटनीति को मास्क डिप्लोमेसी कहा जा रहा है। यद्यपि फरवरी महीने से ही चीन प्रतिदिन 11.6 करोड़ मास्क बना रहा था, इस तरह उसके पास मार्च तक अरबों मास्क का स्टॉक था, जिसे अब चीन 100 से ज्यादा कोरोनावायरस संक्रमित यूरोप, अफ्रीका, मिडल ईस्ट और एशिया के देशों को यह मास्क और उनके साथ चिकित्सा उपकरण मुहैया करा चुका है, ताकि कोई देश उसकी सॉफ्ट पावर पर आपत्ति ना ले सके।
चीन अब तक इटली, स्पेन, ईरान, फिलिपींस, ईराक, इथिओपिया, सर्बिया, हंगरी इत्यादि को लाखों मास्क, टेस्टिंग किट और वेंटिलेटर उपलब्ध करा चुका है। हाल ही में चीन ने डब्ल्यूएचओ को कोरोनावायरस से लड़ने के लिए 20 मिलियन डॉलर की सहायता प्रदान की है और वर्तमान में संक्रमण का केंद्र बने न्यूयॉर्क शहर के लिए भी 22 प्लेनों में 1000 वेंटिलेटर भी विशेष रूप से भेजा है। हालांकि इस सॉफ्ट पावर को बढ़ाने में चीन के अरबपति भी साथ दे रहे हैं, जिसमें सबसे आगे जैक मा और उनकी कंपनी अलीबाबा शामिल है। जैक मा ने अफ़्रीका महादेश को 11 लाख टेस्ट किट, 60 लाख मास्क, 60000 मेडिकल सुरक्षा सूट मुहैया कराया है जबकि 24 लैटिन अमेरिकी देशों को 20 लाख मास्क, 104 वेंटीलेटर दिया है। उन्होंने 2 प्लेन में भारत को भी मेडिकल सप्लाईज भेजे हैं, जिसे इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी ने प्राप्त कर लिया है। लेकिन यहां पर जैक मा का सहयोग इसलिए लिया जा रहा ताकि अगर कोई देश चीनी सरकार की सहायता लेने से मना कर भी दे, तब भी वह जैक मा जैसे दानी और अलीबाबा जैसे विश्व प्रसिद्ध कंपनी की मदद को ना ठुकरा पाए, जो अंततः चीन को ही फायदा दिलाएगी। इस कूटनीतिक सहायता से चीन को अपने बीआरआई परियोजना को बचाने के साथ 5जी तकनीक फैलाने का भी मौका मिलेगा।
यूरोपियन यूनियन के चीफ डिप्लोमेट जोसेप बॉरेल ने हाल ही में इस चीनी सहायता को दान की राजनीति कहा है, ताकि वह विभिन्न देशों को यह बता सके कि अब अमेरिका नहीं, चीन ही हर परिस्थिति में दुनिया का मददगार होगा। चीन का प्रभाव इस कदर हावी है कि ऐसे मौके पर भी उसने एक हेल्थ सिल्क रोड बनाने का प्रस्ताव दिया है जिससे वह महामारी से प्रभावित देशों को इस रूट के तहत सहायता पहुंचा सके, इससे कोरोनावायरस पर घिरे चीन को कवर करने का मौका मिल जाएगा। इन सब में जानने वाली बात यह है कि चीन ने अधिकतर मदद भी लगभग उन्हीं देशों को पहुंचाई है जो कि उसके बेल्ट एंड रोड परियोजना से जुड़े हुए हैं, इनमें ज्यादातर देश अफ्रीका और यूरोप से संबंधित हैं। अफ्रीका इसलिए क्योंकि वह गरीब महाद्वीप है जो अकेले इस वायरस से लड़ने में सहायक नहीं हैं। जबकि यूरोप इसलिए क्योंकि यूरोपियन यूनियन में आपसी टकराव चरम पर है और इटली जैसा विकसित देश भी अब बीआरआई में शामिल है। चूंकि इटली शरणार्थी संकट और अर्थव्यवस्था के खस्ताहाल के अलावा यूरोप में सबसे ज़्यादा संक्रमण से जूझ रहा है इसलिए चीन उसके द्वारा यूरोपियन यूनियन में एक स्पेस तैयार करना चाहता है, ताकि अन्य यूरोपीय देशों को अपने प्रभाव में ला सके। आप इस प्रभाव का स्तर इस बात से समझिए कि जब चीनी प्लेन स्वास्थ्य उपकरण लेकर सर्बिया पहुंचा तो वहां के राष्ट्रपति अलक्जेंडर वोकिक ने एयरपोर्ट पर ही चीनी झंडे को चूम लिया। इसी तरह का सम्मान चेक रिपब्लिक ने बढ़-चढ़कर दिखाया, क्योंकि इस कोरोना महामारी में चीन की मदद यूरोपियन यूनियन और डब्ल्यूएचओ से कहीं ज़्यादा थी।
हालांकि ऐसा नहीं है कि चीन अकेला ही मदद कर रहा है, अन्य देश भी हैं जो मदद के लिए आगे आ रहे हैं। बस फर्क इतना ही है कि वे सभी चीन की तरह मीडिया में अपना प्रोपेगंडा नहीं फैला रहे। ऐसी मुसीबत में भी जब अमेरिका दुनिया का सबसे ज्यादा संक्रमण वाला देश बन चुका है, तब भी उसने 100 मिलियन डॉलर सहायता की घोषणा की है। रूस ने इटली में 14 मिलिट्री एयरक्राफ्ट्स में विशेषज्ञ सैनिकों के साथ डॉक्टर्स की टीम और मेडिकल सप्लाईज भेजा है, एवं अमेरिका को भी सहायता भेजने की बात कही है। इसी तरह साउथ कोरिया ने फिलीपींस को 15000 टेस्ट किट डोनेट किए हैं, और ताइवान अमेरिका को हर हफ्ते एक लाख मास्क भेज रहा है। इसी मदद में भारत भी शामिल है जिसने अमेरिका, ब्राजील, इजरायल, फ्रांस, सार्क नेशंस सहित मॉरीशस, सेशेल्स, मलेशिया, लेबनान इत्यादि देशों को स्वास्थ्य सुविधाएं व खाद्य सामग्री मुहैया कराई है, लेकिन अब इस मास्क डिप्लोमेसी ने चीन की रणनीति को फिर से कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है क्योंकि जिस मदद को लेकर चीन इतना खिलखिला रहा, उसके बुरे परिणाम भी आने शुरू हो गए हैं। इसका झटका चीन को तब लगा जब नीदरलैंड ने खरीदे हुए 12 लाख मास्क में से 6 लाख मास्क को डिफेक्टेड बताकर वापस कर दिया। इसी तरह स्पेन के खरीदे हुए 60000 किट काम नहीं कर रहे हैं जिनकी एक्यूरेसी मात्र 30% है। स्लोवाकिया ने 16 मिलियन डॉलर के 12 लाख एंटीबॉडी खरीदे, वह भी खराब निकले। चेक रिपब्लिक ने 3 लाख टेस्ट किट खरीदे थे इसमें भी एक तिहाई डिफेक्टेड निकले। तुर्की भी चाइनीज़ मेडिकल सप्लाई की क्वालिटी को लेकर समस्या झेल रहा है ऐसे तानों को चीन से ना तो उगलते बन रहा है ना ही निगलते, क्योंकि यह सब महामारी में उसकी देरी की वजह से हुआ है जिससे वो अपनी सप्लाई रोक भी नहीं सकता।
हाल ही में खबर निकल कर आई है कि चीन इटली पर दबाव बना रहा है, कि जनवरी में इटली ने वुहान में जो सप्लाई डोनेट की थी, इटली उसे चीन से वापस पैसों में खरीद ले। चीन की इस कार्यशैली ने इटली को बहुत नाराज कर दिया है। लेकिन यह जो कूटनीति खेली जा रही है एक विशेषज्ञ के रूप में यह निष्कर्ष निकाला जाना जरूरी है कि आखिर यह मदद चीन को कितना फायदा पहुंचाएगी। क्या सच में छुटपुट मदद पहुंचाकर चीन वह सहानुभूति हासिल कर लेगा जो उसे इस महामारी को फैलाने के लिए उसे दंड के रूप में दी जाने वाली है। चूंकि कोई भी देश मुसीबत के समय किए उपकार को आसानी से नहीं भूलता इसलिए अनेकों देश 1-2 सालों तक चीन का अप्रत्याशित साथ तो ज़रूर देंगे जैसा कि इथियोपिया के प्रधानमंत्री एवं नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्तकर्ता अबी अहमद अली ने जैक मा को विशेष धन्यवाद देकर दिया है। लेकिन मैं समझता हूं कि दीर्घावधि में यह सहायता चीन को नहीं बचा पाएगा। क्योंकि चीन ऐसा देश नहीं है जहां सबकुछ सामान्य है, उनकी महत्वाकांक्षाएं बहुत जटिल हैं। बोलने की आज़ादी व मानवाधिकार का उल्लंघन, ऋण जाल, बेल्ट रोड परियोजना से दूसरे देशों की संप्रभुता का उल्लघंन, आक्रामक विस्तारवादी नीति, टेक्नोलॉजी के द्वारा डाटा चुराकर प्राइवेसी पर हमला करना और हाल ही में मास्क डिप्लोमेसी यह सब नीतियां चीन को दशकों तक कूटनीति में घेरे और उलझाये रहेंगी।
17 अप्रैल 2020
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