इससे पहले कि आप ईरान-चीन की इस डील के बारे में जाने, सबसे पहले आपको जानना चाहिए की जितनी ये रकम है उतना हमारे भारत की साल भर का बजट हैं 400 बिलियन डॉलर यानी लगभग 28 लाख करोड़ रुपए और आजादी के बाद से लेकर आज तक 72 सालों में हमने जितना विदेशी मुद्रा भंडार रखा है वह भी इससे थोड़ा ही ज्यादा है लगभग 429 बिलियन डॉलर। अब सोचिए इतनी रकम चीन ईरान में निवेश करने जा रहा है। यह पाकिस्तान में 50 बिलियन डॉलर से बनने वाले चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर से भी 8 गुना ज्यादा बड़ा होगा. इसमें कोई शक नहीं कि यह रकम ईरान को चीन पर पूरी तरह निर्भर बना देगी, लेकिन आखिर यह सब हुआ कैसे और किस तरह यह निवेश भारत के चोट को नासूर बना देगी??

तो इसका कारण है, अमेरिका। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी वादे को पूरा करते हुए सबसे पहले ईरान न्यूक्लियर डील तोड़ा फिर ईरान के ऑयल और गैस व्यापार पर प्रतिबंध लगाया, बाद में फाइनेंसियल एक्शन टॉस्क फ़ोर्स यानि एफएटीएफ में ब्लैकलिस्टेड करवा कर दुनिया भर की संस्थाओं व देशों से क़र्ज़ लेने पर प्रतिबन्ध लगवा दिया, उसके बाद कॉउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवेर्सरीज़ श्रू सैंक्शन्स एक्ट यानी काट्सा कानून बनाकर दुनिया भर के देशों से हथियारों की खरीदी पर भी रोक लगवा दी और तो और ईरान की सेना रेवोल्यूशनरी गार्ड्स को ही आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया। अब सवाल यह है कि ईरान करे तो क्या करे। सरकार के पास देश चलाने के लिए पैसे नहीं है और महंगाई एवं बेरोजगारी चरम पर हैं। ऐसे में ईरान को सूरज की एक किरण दिखाई दे रहा था, चाबहार बंदरगाह और भारत। सोचिए यह भारत की कितनी बड़ी कूटनीतिक जीत थी कि पूरे ईरान पर प्रतिबंध होने के बाद भी भारत ने अमेरिका से चाबहार बंदरगाह पर प्रतिबंध से छूट प्राप्त कर लिया था। यह वह रास्ता था जो भारत को अफगानिस्तान होते हुये मध्य एशिया में किर्गिस्तान, उज़्बेकिस्तान, कज़ाख़स्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के रास्ते यूरोप को जोड़ सकता था लेकिन पता नहीं भारत सरकार को आखिर क्या डर है कि अपने 800 मिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट पर भारत बहुत ही सुस्ती से कार्य कर रहा है।

अब दूसरा पड़ाव यहीं से शुरू हुआ, क्योंकि जब अमेरिका ने पूरी दुनिया को ईरान से तेल बंद करने को कहा तो ईरान को उम्मीद थी कि भारत अमेरिका की बात ना मानकर ईरान से तेल खरीदता रहेगा लेकिन भारत झुक गया। तब ईरानी राजनयिक ने बयान दिया था “कि इतने मुश्किल से आजादी पाने वाला दुनियां का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपनी संप्रभुता की रक्षा तक नहीं कर पाया और झुक गया” डिप्लोमेसी में ये बात कितनी गहरी है, शायद आप में से बहुत ना समझ पाएं लेकिन बस इतना जान जाइए कि उस घड़ी में ईरान के साथ सिर्फ एक देश खड़ा रहा, और वह है चीन। जिसने अमेरिकी प्रतिबंध को दरकिनार कर ईरान से तेल खरीदना चालू रखा।

इसके बाद तीसरा पड़ाव यहाँ से शुरू हुआ, जिसमें ईरान, रूस, चीन और उत्तर कोरिया चारों साथ आ गए। ऐसा क्यों?? यहां पर ध्यान दीजिए क्योंकि एफएटीएफ में सिर्फ 2 देश ब्लैकलिस्टेड हैं ईरान और उत्तर कोरिया, जबकि काटसा कानन में 3 देश ब्लैकलिस्टेड हैं ईरान, रूस और उत्तर कोरिया। दो देश परमाणु कार्यक्रम के लिए प्रतिबंधित है जबकि रूस क्रीमिया पर कब्जे और अमेरिकी चुनाव में दखल के कारण। लेकिन यहां पर एक और पहलू है कि 2018 में चीन को भी काट्सा कानून के अन्तर्गत प्रतिबंधित कर दिया गया है रूस से एस-400 ट्रायम्फ एन्टी बैलिस्टिक मिसाइल हथियार और ईरान से तेल खरीदने के कारण। जिसके बाद अब इन 4 देशों ने अपने अपने हित के लिए अनेकों कार्यक्रमों में सहयोग करना प्रारंभ कर दिया है।

यहीं से आखिरी पड़ाव की शुरुआत हुई, कि चीन कर्ज की जगह लाइन ऑफ क्रेडिट के नाम से 25 सालों में ईरान को 400 बिलियन डॉलर देगा वो भी अपनी करेंसी युआन के द्वारा, जिसमे से 280 बिलियन डॉलर तेल के कुएँ खोजने और तेल निकालने के लिए एवं के लिए। इसमें सबसे चिंताजनक बात यह होगी कि इन सबके निर्माण में सुरक्षा के लिए 5000 चीनी आर्मी ईरान में तैनात रहेंगे। इस तरह चीन अपने बेल्ट एंड रोड परियोजना और सिल्क रूट को पूरा करते हुए यूरोप तक जा सकेगा इसके साथ ही ईरान को कई दशकों तक के लिए चीन के रूप में तेल का स्थायी खरीददार भी मिल जाएगा। हालाँकि आपको यह भी जानना चाहिए कि 1979 में इस्लामिक क्रान्ति होने के बाद बने संविधान में ईरान ने घोषणा की थी कि वह न कभी वेस्ट की ओर जाएगा न ही ईस्ट की तरफ यानी न अमेरिका से ज़्यादा नज़दीकी होगी न ही रूस से और न ही किसी विदेशी सेना को अपने यहाँ आने की अनुमति देगा, लेकिन जिस तरह से ईरान घिरा हुआ है उसने उसी हिसाब से रणनीति बदल ली है। इन सब के बाद अन्ततः ये डील और निवेश सफल हो गया तो भारत पहले अफगानिस्तान और अब ईरान में इतने पैसे लगाकर फंस जाएगा, साथ ही हम मध्य-पूर्व में अपना एक महत्वपूर्ण साथी खो देंगे। देखा जाये तो इसकी शुरुआत भी हो चुकी है, क्योंकि कश्मीर पर यूएई खुलकर हमारे साथ रहा और सऊदी अरब के कारण लगभग पूरा मुस्लिम देश इस मुद्दे पर चुपचाप रहा सिवाय एक मुस्लिम देश के, और वो था हमारा महत्वपूर्ण साथी ईरान, जिसने धारा 370 को हटाना असंवैधानिक बताया था। अब ये हमारे पॉलिसी मेकर्स को देखना होगा की भारत ये सब कैसे डैमेज कण्ट्रोल करता है.

23 सितम्बर 2019

@Published : V9 Voice Newspaper, 24th September 2019, Tuesday, Indore Edition, Page 06 (Editorial)
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