गगनचुंबी इमारतों और आर्थिक समृद्धि में एशिया के चार टाइगर में से एक कहे जाने वाले हांगकांग में लगातार पिछले 17 हफ्तों से ये क्या हो रहा है, इसकी शुरूआत कैसे हुई और ऐसा होने के पीछे का इतिहास क्या है इसके साथ ही क्यों दुनियां को डर है कि हांगकांग में चीन तियानानमेन स्क्वायर जैसे नरसंहार की कोशिश कर सकता है। इन सबसे पहले आप ये जानिए की एक 18 वर्षीय छात्र सांग ची किन, जो कि एक पुलिसकर्मी पर हमला करने वाले लगभग एक दर्जन छात्रों के समूह में शामिल था, को सीने में गोली लग गई। क्योंकि वह लोहे की किसी वस्तु से हमला कर रहा था। हालांकि उसके जिंदा बच जाने की उम्मीद है। उसके साथ ही सौ से ज़्यादा हांगकांग वासियों, प्रदर्शनकारियों एवं पुलिसकर्मियों को भी अस्पताल में भर्ती कराया गया है जिन्हें मामूली चोंटे आई हैं। आप इन्हीं बातों से अंदाजा लगाइए कि पिछले 3-4 महीनों से वहां किस स्तर की हिंसा हो रही है जिन्हें पूरी दुनियां आज़ादी का आंदोलन और चीन दंगा बता रहा है।
ये सब जानने के लिए हमें इतिहास में थोड़ा पीछे जाना होगा जब अफ़ीम युद्ध में ब्रिटेन ने चीन को हराकर 1842 में नानकिंग सन्धि के तहत व्यापारिक बंदरगाह के रूप में आबाद हांगकांग को अपना विशेष उपनिवेश बना लिया। 150 वर्षों तक अपने अधीन रखने के बाद ब्रिटेन ने 1984 में हांगकांग ट्रांसफर एक्सचेंज पर हस्ताक्षर कर दिया, जिसमें एक देश, दो प्रणाली के सिद्धांत के तहत हांगकांग को 1997 में चीन को सौंप दिया जाएगा। जिसका मतलब यह होगा कि चीन का हिस्सा होने के बाद भी हांगकांग 50 वर्षों यानी 2047 तक विदेशी और रक्षा मामलों को छोड़कर सब कुछ अपनी स्वायत्तता के अनुसार कर सकेगा। इसी का परिणाम है कि आज हांगकांग का अपना संविधान, जिसे बेसिक लॉ ऑफ हांगकांग के नाम से जाना जाता है, के अलावा खुद का झंडा, पासपोर्ट, मुद्रा और चीन से अलग राजनीतिक व्यवस्था है। अब पूरी लड़ाई यहीं 1997 से शुरू हुई है। जब से हांगकांग चीन के हांथो में आया है तब से ही वो किसी ना किसी कानून के तहत वहां अधिक से अधिक पाबंदियां लगाने की कोशिश कर रहा है। और यह विरोध का रूप बनी 2014 में, जब एक 17 वर्षीय छात्र जोशुआ वांग ने लोकतंत्र की मांग को लेकर आंदोलन कर दिया, देखते ही देखते हज़ारों छात्र और नागरिक इस आंदोलन का हिस्सा बनते गए। भीगते पानी में लोगों ने छाता लेकर भी इस आंदोलन को 79 दिनों तक बनाए रखा, जिसे अंब्रेला मूवमेंट के नाम से जाना गया।
अब बात करते हैं हम आज के आंदोलन की, जिसने चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता को हिलाकर रख दिया है। इसकी शुरूआत हुई एक घटना से, जिसमें हांगकांग के एक व्यक्ति ने चीन में जाकर हत्या कर दी और लौटकर वापस हांगकांग आ गया। जब उसे पकड़ने और सजा देने की बारी आयी तो कहा गया कि हांगकांग के किसी व्यक्ति को चीन ले जाकर वहां के कानून के मुताबिक सज़ा नहीं दी जा सकती क्योंकि चीन- हांगकांग के बीच कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है। बस फिर क्या था, चीन के कहने पर हांगकांग की मुख्य प्रशासक केरी लैम ने एक प्रत्यर्पण कानून लागू कर दिया जिसके तहत किसी भी हांगकांग नागरिक को चीन में ले जाकर भी सज़ा दी जा सकेगी। इस कानून के आने के बाद पूरे हांगकांग में खामोशी छा गई। लोगों को लगने लगा कि अब सबसे ज़्यादा पत्रकार और लोकतंत्र समर्थकों को इसका शिकार बनाया जाएगा क्योंकि वे सभी यहां तो अभिव्यक्ति की आजादी की बात कर सकते हैं चीन में नहीं। इसी बात को आधार बनाकर हॉन्गकॉन्ग की 70 लाख में से लगभग 10 लाख आबादी विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर आ गई और इस कानून को खत्म करने के साथ साथ हांगकांग की आज़ादी और लोकतंत्र सहित 5 मांगों को लेकर प्रदर्शन करने लगे। लेकिन जैसे जैसे आंदोलन बढ़ा वह हिंसक हो गया, अंततः थक हारकर चीन अपनी पैरामिलिटरी फोर्सेस हॉन्गकॉन्ग भेज दी। अचानक से आंदोलनकारियों के बीच सन्नाटा छा गया और वो सभी एयरपोर्ट में घुस गए। 3 दिन तक एक भी हवाई जहाज ना हीं उतरा ना उड़ा, देखा जाए तो सभी प्रदर्शनकारी ये ही चाहते थे क्योंकि वहां पर दुनियाभर के नागरिक फंसे थे साथ ही अनेकों मीडिया समूह के पत्रकार भी। ऐसा करने का डर और कारण जानकर आप भी आश्चर्यचकित ही जाएंगे, वह डर था तियानानमेन स्क्वेयर नरसंहार का और कारण था, कि अगर ऐसा कुछ भी दोहराया गया तो इस बार पूरी दुनियां के लोग देखें और दुनियाभर के पत्रकार इसे टेलीकास्ट करें।
वैसे ये तियानानमेन चौक नरसंहार था क्या, जिसकी चर्चा बार बार की जा रही है। तो यह भीषण हत्याकांड जून 1989 में किया गया था। और उसमे भी विरोध करने वाले लोग थे, चीन के 10 लाख से ज़्यादा छात्र, जो चीन में कम्युनिज्म की जगह लोकतंत्र लाना और बीजिंग से मार्शल लॉ हटाना चाहते थे। उन सभी छात्रों ने विरोध के लिए इसी चौक को इसलिए चुना क्योंकि मओत्से तुंग ने 1949 में चीनी क्रांति में जीत हासि पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का कम्युनिस्ट झंडा फहराया था। वो सभी छात्र अपने विरोध में सफल होने ही वाले थे कि चीन ने टैंकों के साथ पूरी सेना बुला ली। अब उसके बाद जो हुआ वो पूरी दुनिया मे मशहुर है उनमें से एक छात्र टैंक के सामने जाकर खड़ा हो गया, कि अगर आगे बढ़ना है तो पहले मुझे मारना होगा। उसने सोचा था कि हमारी सेना हमपर ही थोड़ी ना गोलियाँ चलायेगी, लेकिन सेना ने बिना कुछ सोचे गोलियाँ चला दी और हजारों छात्रों को मौत के घाट उतार दिया गया। चूंकि उस समय इंटरनेट नहीं था इसलिए दूसरे देशों तक ये जानकारी पहुंचने में 5 दिन लग गए। तब चीन ने कहा था कि सिर्फ 200 लोग मरे हैं जिसमे सैनिक भी शामिल हैं। लेकिन ब्रिटिश इंटेलिजेंस की रिपोर्ट के अनुसार 10000 छात्र मारे गए थे। अब आप समझ गए होंगे कि ये प्रदर्शन हवाईअड्डे पर और सबके सामने क्यों किया गया।
अंत में बस ये बताना चाहता हूं कि दुनियाभर के देशों ने चीन को चेतावनी भरा संदेश भेजा है, कि हमारी नज़र आपकी प्रत्येक कार्यवाही पर है। और तो और पहली बार जी-20 के संयुक्त घोषणापत्र में हांगकांग में हो रहे क्रियाकलापों पर चर्चा की गई, इतना ही नहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में दुनियाभर के सामने हांगकांग का समर्थन किया तथा किसी भी अनुचित कार्यवाही के लिए चीन को अंजाम भुगतने की चेतावनी भी दे दी। चीन के लिए इन दो जगहों पर हांगकांग मुद्दे पर चर्चा होना ठीक वैसा ही है, जैसा हमारे लिए कश्मीर। अंततः चीन ने हार का धुंट पीकर इस कानून को वापस ले लिया, लेकिन प्रदर्शनकारी अभी भी पूरी आज़ादी, सभी के ऊपर लगे आरोपों को ख़ारिज करने, हिरासत में लिए गए लोगों को छोड़ने, केरी लेम को बर्खास्त करने की मांग करते हुए आज भी 17 हफ़्तों से आंदोलनरत हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि चीन की सत्ता हांगकांग को आज़ादी या पूरी तरह लोकतंत्र बनने देगी, भले ही इसके लिए चीन को किसी भी हद तक जाना पड़े। हालांकि ट्रेड वार, शिनजियांग में उइगर मुस्लिमों की स्थिति और दक्षिणी चीन सागर को लेकर चीन चौतरफा दबाव में है और तो और पिछले हफ्ते अमेरिका ने 28 चीनी कम्पनियों और उनके प्रमुखों पर प्रतिबंध भी लगा दिया है, ऐसी स्थिति में चीन सैन्य कार्रवाई के बारे में सोच भी नहीं सकता। पर देखते हैं आगे क्या होता है और हमारी भी नज़रें घटना पर बनी ही रहेंगी।
15 अक्टूबर 2019
@Published : Ambikavani Newspaper, 17 October 2019, Thursday, Ambikapur Edition, Page 02
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