जिस तरह 19वीं सदी में यूरोप की अर्थवयवस्था और 20वीं सदी में अमेरिका का बोलबाला था, उसी तरह राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत दौरे से पहले ग्लोबल टाइम्स कहा है कि भारत के बिना 21वीं सदी एशिया की नहीं बन सकती दुसरी ओर कश्मीर को लेकर भारत की आक्रमकता साथ ही टेंपल डिप्लोमेसी एवं सॉफ्ट पावर ने चीन को और ज्यादा परेशान कर रखा है। इस कूटनीति और उदार शक्ति की चर्चा करें इससे पहले यह बताना जरूरी था सितंबर के शुरुआती महीने में व्लादिवोस्तोक शहर में राष्ट्रपति पुतिन से मिलने तथा आखिरी हफ्ते में न्यूयॉर्क में राष्ट्रपति ट्रम्प से मिलने के बाद यह अत्यंत ही जरूरी था कि भारतीय प्रधानमंत्री चीन के राष्ट्रपति से मिलें और यह रास्ता निकलकर आया दुसरी अनौपचारिक वार्ता के माध्यम से। अनौपचारिक वार्ता को करने का सुझाव 2014 में सुझाया गया था जिसके बाद पहली वार्ता डोकलाम विवाद के ठीक बाद अप्रैल 2018 में चीन के वुहान शहर में आयोजित की गई थी। जहां दोनों देशों ने एक साझा घोषणापत्र जारी करके आतंकवाद को एक वैश्विक समस्या माना था। हालांकि इस तरह की अनौपचारिक वार्ता में ना कोई समझौते होते हैं और ना ही इसका कोई तय एजेंडा होता है। उस वार्ता के ठीक पांच हफ्ते बाद प्रधानमंत्री मोदी किंगदाओ शहर में दौरे पर गए थे जहां दोनों देशों ने दो समझौते पर हस्ताक्षर किया था, इसमें कोई शंका नहीं कि दोनों समझौतों की रूपरेखा उसी अनौपचारिक वार्ता में बनाई गई थी।
अब यहां पर ये समझना जरूरी है कि इसी साल किर्गिस्तान के बिश्केक में हुए शंघाई सहयोग संगठन और जापान के ओसाका में हुए जी-20 समिट में दोनों नेताओं के मिलने के बाद तत्काल इस हाई लेवल अनौपचारिक मीटिंग की आवश्यकता क्यों पड़ी और हर साल होने वाले इस औपचारिक वार्ता को अप्रैल की जगह डेढ़ साल बाद अक्टूबर में क्यों आयोजित किया गया, जबकि सिर्फ 3 हफ्तों बाद ही दोनों नेता 31 अक्टूबर से 4 नवंबर तक थाईलैण्ड के बैंकॉक में होने वाले आसियान की मीटिंग तथा एक महीने बाद ही 13-14 नवंबर को फिर से ब्रिक्स कि मीटिंग में ब्राज़ील के ब्राज़ीलिया में मिलने वाले हैं। तो इसका कारण है ट्रेड वॉर से कमज़ोर होती चीन की अर्थव्यवस्था और मंदी की मार झेल रही सुस्त पड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था। साथ ही दोनों देशों के बीच कश्मीर और लद्दाख को लेकर चिंताएं चरम पर है। लेकिन यह अच्छी बात है कि वार्ता में इसपर चर्चा नहीं हुई। हम अक्सर कहते हैं कि वह देश हमारा दुश्मन है या वह हमारा सबसे भरोसेमंद साथी है लेकिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की एक बात हमें हमेशा याद रखनी चाहिए “कि कूटनीति में ना कोई हमारा स्थायी मित्र होता है और ना ही दुश्मन, स्थायी सिर्फ राष्ट्रीय हित होते हैं”। इसका उदाहरण यह है की पूरे महाद्वीप में सबसे बड़े प्रतिद्वंदी होने के बाद भी 50 सालों से ज्यादा समय तक दोनों देशों की सीमाओं पर एक भी गोली नहीं चली, और तो और 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के समय चीन के कुछ सैनिक एलएसी पार करके 20 किलोमीटर अंदर आ गए और लगभग 3 हफ्तों तक वही तंबू गाड़ कर बैठे रहे थे। एक वह वक्त था और आज यह वक्त है कि हमने उस घटना के साथ-साथ डोकलाम जैसे गंभीर विवाद को भी सफलतापूर्वक क्रैक डाउन कर दिया। निश्चित ही इसका मतलब यह नहीं कि चीन कमजोर है बल्कि उसे दुनिया में नंबर वन बनने की महत्वाकांक्षा ने पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था, जबकि यह भी नितांत सत्य है कि अगले 100 सालों तक चीन ही हमारा सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी रहेगा।
अब हम चलते हैं राषट्रपति जिनपिंग के दौरे पर, जो कि उनके आने से सिर्फ 2 दिन पहले ही फाइनल हुई थी। इस मौके पर चीन की कूटनीति देखिए, भारत को रिझाने के लिए प्रधानमंत्री इमरान खान के चीन दौरे पर रहने के बाद भी उसने कश्मीर सहित जबकि कुछ दिन पहले ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस मुद्दे को युएन चार्टर के तहत सुलझाने और दुनियां से पाकिस्तान की बात को सुनने का आग्रह किया था। हमें यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि चीन सही राह पर है बल्कि वह भारत से द्विपक्षीय व्यापार के बढ़ने की जगह उसमे आयी 1.5 प्रतिशत की कमी से । परेशान हो चूका है इसलिए राष्ट्रपति जिनपिंग ने इस भारत दौरे को स्वीकार किया ताकि वे कश्मीर और पाकिस्तान कार्ड खेलकर भारत को अपने पक्ष में कर सकें और उनका यह दौरा सफल हो जाए।
भारत ने भी इस कार्ड का जवाब अपने आक्रामकता और सॉफ्ट पॉवर दोनों से दिया। भारत हर मंच पर कश्मीर को आंतरिक मामला तो बताता ही रहा है, लेकिन शी जिनपिंग के आने से 2 घंटे पहले भारत ने जिस स्पष्टता से दुनियां के किसी भी देश को कश्मीर में दखल न देने की जो चेतावनी दी है, उससे चीन काफी परेशान हो गया होगा। क्योंकि कूटनीति में प्रतिक्रियाओं का अपना महत्व है जिन देशों से आपके संबंध हैं आप उन्हें संबंध बिगड़ने तक चेतावनी देते ही हैं जिससे वे कई बार अपने आचरण पर पुनर्विचार को बाध्य होते हैं। दूसरी है हमारी सॉफ्ट पावर जिसने चीन को हमेशा ही परेशान रखा है क्योंकि दुनिया भर में भारत की संस्कृति, सभ्यता, उदारता, खानपान, योगा, आयुर्वेद, बॉलीवुड की जो विरासत है उसकी जगह चीन कभी नहीं ले पाया, और आज भी यही हुआ है भारत ने दौरे के लिए ऐसे स्थान को चुना जो सांस्कृतिक व व्यापारिक रूप से 2000 सालों से ज़्यादा समय से चीन से जुड़ा हुआ है वह है पल्लव राजवंश की राजधानी महाबलीपुरम, जहां मोदी जी ने शी जिनपिंग को पंचरथ, कृष्णा बटर बॉल, अर्जुन तपस्या स्थली, एवं शोर टेंपल घुमाया। एक और भी बहुत महत्वपूर्ण बात है जिसपर शायद अनेकों विश्लेषकों का ध्यान नहीं गया होगा। वह है पूरे चाइना के घर-घर में बसने वाले, मार्शल आर्ट व शाओलिन टेंपल के जनक बोधिधर्म। जो कि इसी पल्लव राजवंश के राजा सुगन्ध के तीसरे राजकुमार थे जो बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए चीन चले गए और वहां चीन के दक्षिणी तट कैंटन बंदरगाह पर उतरे थे। चूंकि आज भी यह विवाद का विषय है कि चीन में बौद्ध धर्म कहां से पहुंचा, ज्यादातर विचारकों का मत है कि यह उत्तर भारत से होकर चीन में पहुंचा था इसी बात की विवेचना के लिए चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आए थे और उन्होंने महाबलीपुरम की यात्रा भी की थी जिसकी जानकारी उन्होंने अपनी यात्रा वृतांत की किताब सी-य-की में की है।
रही बात चीन की तो उसके साथ हमारे संबंधों की जटिलता का आभास सबको है। भारत तवांग के पास अरुणाचल प्रदेश में चीन से लगती वास्तविक सीमा रेखा से 100 किलोमीटर दूर 14000 फीट की ऊंचाई पर अपने इतिहास का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास “हिम विजय” कर रहा है जिसमें हमारी तीनों सेनाएं हिस्सा ले रही हैं कई चरणों में किया जाने वाला 12,000 सैनिकों वाला यह युद्धाभ्यास 25 अक्टूबर को समाप्त होगा जबकि चीन इस पर नाराजगी जाता रहा है। वह पूरे अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत कहता है और तवांग को अपना मठ बताता है साथ ही राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अनौपचारिक दौरे के समय इस युद्धाभ्यास पर सख्त आपत्ति जताई है लेकिन भारत ने बस यह कहा कि इसकी योजना काफी पहले बनी हुई थी।
बहरहाल इस अनौपचारिक दौरे के बाद का निष्कर्ष ये है कि दोनों देश अगले वर्ष अपने राजनयिक संबंधों के 70 वर्ष पूरे होने की खुशी मनायेंगे, चेन्नई को फुचियान से जोड़ा जाएगा। फार्मास्यूटिकल, आईटी और मैनुफैक्चरिंग में निवेश व साझेदारी बढ़ाया जाएगा। इसके अलावा जो सबसे बड़ी दो बातें रही। वो है पहला, चीन ने कश्मीर पर किसी भी तरह की चर्चा नहीं की, दूसरा भारत और चीन अब रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की दिशा में कदम उठाएंगे जिसके लिए भारत से रक्षा मंत्री और चीन के वाइस प्रीमियर को इस कार्य को मूर्त रूप देने के लिए नामित किया गया है। दौरे के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के हवाले से कहा है कि भविष्य के लिए यह अच्छा होगा कि हाथी और ड्रैगन साथ-साथ डांस करें, साथ ही चीन से सीख लेकर भारत भी मैन्युफैक्चरिंग हब और अपने मेक इन इंडिया योजना को सफल बना सकता है। क्योंकि हाल ही में जापान की ब्रोकरेज कंपनी नोमुरा ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार अप्रैल 2018 से अगस्त 2019 तक चीन में 56 कंपनियों ने पलायन किया, जिसमें भारत में सिर्फ 3 ने ही अपना कारोबार स्थापित किया, जबकि 26 वियतनाम में चले गए। अंत में राष्ट्रपति ने मोदी को तीसरी अनौपचारिक यात्रा पर आने का निमंत्रण दिया, तत्पश्चात राष्ट्रपति शी जिनपिंग नेपाल के दौरे पर चले गए। भारत के लिए चिंता की बात यह भी है कि इस दौरे से पहले पाकिस्तान और दौरे के बाद नेपाल से मिलना हमें कितना नुकसान पहुंचा सकता है और हमारे लिए यह भी आत्ममंथन का विषय है क्या वाकई हमारा तत्काल पड़ोसी नेपाल भी चीन के पाले में चला गया है मुझे लगता है अब चीन से कुछ कठिन सवाल पूछने का समय है कि इमरान खान के दौरे पर संयुक्त बयान जारी करके यह कहना कि कश्मीर पर हमारी नजर बनी हुई है का क्या मतलब है। तो इस तरह मोदी जी कैसे उम्मीद कर रहे हैं कि चीन के साथ राजनयिक संबंधों को और अधिक मजबूत बनाया जाएगा। मैं यह बात समझता हूं कि देश को निवेश की जरूरत है, लेकिन मैं यह भी चाहूंगा कि वह निवेश ऐसे माध्यम से ना आए जो हमें उसके ऊपर निर्भर बना दे। इसलिए सरकार ने जो आक्रामकता बनाई हुई है वह बनी रहनी चाहिए, साथ ही भारत को आगे से अपने एजेंडे में सीमा विवाद के साथ ही तिब्बत, हांगकांग, ताइवान और दक्षिणी चीन सागर का मुद्दा भी जरूर शामिल किया जाना चाहिए।
15 अक्टूबर 2019
@Published : V9 Voice Newspaper, 15 October 2019, Tuesday, Indore Edition, Page 06 (Editorial)
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